मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

किताब



कागज पर छपी, हर एक किताब
अब करती है बातें
अपने अस्तित्व की
हर एक किताब
जिसने निगल रखा है
तिमिर अज्ञानता को,
हर उम्र को कहती है
करो मुझसे प्यार
सिर्फ मुझसे ही है
जीवन का आधार,
हर एक किताब
पाठ पढ़ाती है, मानवता का
प्रेम और सहिष्णुता का
समाज मरते है, तो मरे
संस्कृति मिटती है, तो मिटे
भौतिकता आये या जाये
बचा रह जायेगा,
हर एक किताब का अस्तित्व!
करना होगा, हर उम्र को इसे स्वीकार
नहीं है मुमकिन
अब इसका तिरस्कार
हर एक किताब
बताती है, कौन है बलवान
और किसका है सम्मान
कैसे होगा,
प्रभुसत्ता का आह्वान
पढ़ाती है नैतिकता का दर्शन
और कहती है –
करो दिव्य दृष्टि का सृजन!  

सोमवार, 22 अप्रैल 2013

लक्ष्य


देते रहोगे धोखा, ख़ुद को कब तलक 
होगी ना पूरी आरज़ू, हमारी जब तलक 
उम्मीदों को कभी, बुझने न देगें हम 
चलेगा साँस मेरी जब तलक। 

सच है कि दूर है मंज़िल पर हौसले बुलंद है 
रूकती नहीं है धार, मिले न साहिल जब तलक। 

कांटे चुभेंगे राहों में, घायल भी होगे कदम 
हासिल न हो मुकाम, सफ़र चलेगी जब तलक 
चाँद और तारों पर नहीं, सूरज पर है अपनी नज़र 
मंज़ूरे है काली रात भी, रोशनी ना मिलें जब तलक। 

एक सवाल - महिला दिवस पर?


एक सवाल 
...............................................

मैंने अक्सर देखा है 
लोगों को रोते हुए 
लड़की के जन्म लेते ही 
आँखों से आंसू टपकते हुए 
हर तरफ मातम सा छाते हुए...

मैंने अक्सर देखा है 
लड़कियों को यह सुनते हुए 
की तू बोझ है,
तुझे पराया घर जाना है 
तेरे हाथ पीले करने है 
तुझसे पिंड छुराना है...

मैंने अक्सर देखा है 
बहुओं को आंँसू बहाते हुए 
चुपचाप दुःख सहते हुए
कभी पिटते हुए,
कभी कोई बोझ सहते हुए 
कभी भाग्य पर रोते हुए,
उसके भाग्य में क्या यही लिखा है
ये जगवालों
क्या नारी की यही कथा है? 

ज़िन्दगी की किताब


ज़िन्दगी की किताब में लिख दिया हूँ 
अरमानों के अक्षरों से 
पर अभी तक सोच रहा हूँ, ये ख्वाब 
होंगे पुरे किस कदर। 

कितने तूफ़ान गुज़र गये 
जाने और कितने जीवन में आयेंगे 
जमाने की रंजिशो से लड़के 
कैसे अपनी तक़दीर बनायेंगे। 

सुर का तो मालूम है 
पर जीवन में राग का पता नहीं 
मंजिल तो सामने है मेरे 
पर राह अभी तक मिली नहीं। 

क्यों मुझे यह हर कदम पर 
मेरी फ़ितरत समझाता है 
जब आरज़ू मेरी सातवें आसमान की होती है 
तो उसे नादानी बतलाता है। 

नादान ~ दिल


ये दिल नादान है
कुछ भी नहीं बतलाता
सारी दुनिया का गम
जाने कहां छुपाता।
रोता है ये दिल
आँसु तक नहीं छलकता
ये दिल कितना नादान हैं
कुछ भी नहीं बतलाता।
हर दिल है जो
हर दिल को चुराता
ये दिल है जो
हर दिल में प्यार जगाता ।
दुनिया भर की खुशियांँ
जाने कहांँ छुपाता
ये दिल कितना नादान हैं
कुछ भी नहीँ बतलाता।
ये दिल दुनिया भर के लिए
प्यार कहांँ से लाता,
अनजाने अजनबियों पर
जान तक लूटाता,
ये दिल कितना नादान हैं -
कुछ भी नहीं बतलाता।

सच्ची - पहलू - की - झलक


बापू के वचन को भूल रहे है
भारत माता को छोड़,
नेताओं की जय बोल रहे है
ये दिल बता
मैं किसकी जय बोलू।
अधिकारों के लिए लड़ रहे है
कर्त्तव्यों की डोरी छोड़,
अपने-अपने संघों की
जय बोल रहे है,
ये दिल बता
मैं किसकी जय बोलू।
मंदिर-मस्जिद के लिए
लड़ रहे है,
गोलियों की पिचकारी छोड़
संम्प्रदायों की जय
बोल रहे है,
ये दिल बता
मैं किसकी जय बोलू।
शिक्षक पढ़ाने से
मुंह मोड़ रहे है,
विद्यार्थी भी पढ़ना छोड़
सिर्फ 26 जनवरी
और 15 अगस्त को,
भारत-माता की जय
बोल रहे है,
ये दिल बता
मैं किसकी जय बोलू।

न्याय


न्याय नाम की चीज नहीं है
अन्याय बढ़ता जाय रे,
मेहनत करता धोतीवाला
टोपीवाला खाय रे।
मर-मर कर जो मेहनत करता
उसका पेट कभी न भरता,
पाल रहा हैं जो जग को सारे
खुद भूखे सो जाय रे।
पुलिस निकलें बस्ती में जब
पीके दारू मस्ती में,
चोर है बैठा थाने में और
साधु पकड़ा जाय रे।
सरकारी दफ़्तर में देखों
खुल्लम-खुल्ला घूसखोरी,
चांदी के जूते से देखों
अब भी पिटा जाय रे।