कागज पर छपी, हर एक किताब
अब करती है बातें
अपने अस्तित्व की
हर एक किताब
जिसने निगल रखा है
तिमिर अज्ञानता को,
हर उम्र को कहती है
करो मुझसे प्यार
सिर्फ मुझसे ही है
जीवन का आधार,
हर एक किताब
पाठ पढ़ाती है, मानवता का
प्रेम और सहिष्णुता का
समाज मरते है, तो मरे
संस्कृति मिटती है, तो मिटे
भौतिकता आये या जाये
बचा रह जायेगा,
हर एक किताब का अस्तित्व!
करना होगा, हर उम्र को इसे स्वीकार
नहीं है मुमकिन
अब इसका तिरस्कार
हर एक किताब
बताती है, कौन है बलवान
और किसका है सम्मान
कैसे होगा,
प्रभुसत्ता का आह्वान
पढ़ाती है नैतिकता का दर्शन
और कहती है –
करो दिव्य दृष्टि का सृजन!